Friday, 9 February 2018

प्राकृतिक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा
मनुष्य की उत्पत्ति प्रकृति से ही हुई है। प्रकृति ही प्रत्येक पौधे को, पशु को तथा मानव को जीवन प्रदान करती है। शायद यही कारण है कि प्रकृति को मां की संज्ञा दी जाती है। लेकिन यदि प्रकृति के नियमों का सुचारू रूप से पालन नहीं किया जाता है तो मनुष्य को उसका दुष्परिणाम भुगतना ही पड़ता है। सबसे बुरा दंड, यदि कोई व्यक्ति अपने को दे सकता है तो वह है प्रकृति के नियमों की उपेक्षा करके बीमारियों का शिकार हो जाना। हममें से अधिकांश व्यक्ति इस बात से अनभिज्ञ हैं कि छोटी अथवा बड़ी बीमारी से ग्रस्त होने पर हमें ठीक होने के लिए दवाइयों का सेवन न करके प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से अपने रोगों का इलाज करना चाहिए।
          प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों से रोगों की चिकित्सा करना प्राचीन सभ्यता की देन है। सम्भवत: हमारे पूर्वजों ने पशु-पक्षियों से प्रेरणा ली थी, क्योंकि वे प्रकृति के बहुत निकट ही रहते थे।
          पशु तथा पक्षी दोनों ही प्राणदायिनी पृथ्वी के संपर्क में हमेशा बने रहते हैं। प्रकृति में घूमने के कारण उन्हें सांस लेने के लिए ताजी हवा प्राप्त होती रहती है। पशु पक्षी अपना शरीर रेत में लोटकर, रगड़कर साफ करते हैं। इसके साथ-साथ उनका व्यायाम भी हो जाता है। पशु-पक्षी अधिकतर जल में डुबकी लगाते हैं, जिससे उनका शरीर स्वच्छ हो जाता है तथा वे ताजगी का अनुभव करते हैं।
          मनुष्यों के विपरीत पशु अपनी बीमारी की दवा अपने आस-पास उगी हुई वनस्पति में ढूंढ़ लेते हैं। यह अलग बात है कि आज के युग में पालतू पशु कृत्रिम दवाइयों पर निर्भर करते हैं। इसका कारण मानव होता है। क्योंकि मानव पालतू पशुओं को बांधकर रखता है जिससे वे स्वतंत्र रूप से विचरण नहीं कर पाते हैं।
          पक्षी बहुत ही कम बीमार होते हैं। पालतू पशु, जिनको बनावटी जीवन जीना पड़ता है। मजबूरी के कारण वे कभी-कभी बीमार पड़ जाते हैं लेकिन उसके बाद भी वे प्रकृति के नियमों का पालन करते हैं। उदाहरणार्थ, यदि कभी कोई पशु बीमार हो जाता है तो वह भोजन करना छोड़ देता है जब उसके शरीर की प्राणशक्ति उसे रोग से मुक्त कर देती है तो वह भोजन खाता है। आमतौर पर कुत्ते और बिल्ली घास का सेवन नहीं करते हैं, लेकिन जब वे बीमार होते हैं तो घास का सेवन अवश्य ही करते हैं जिसके कारण उन्हें उल्टी हो जाती है और जहरीले तत्व उनके पेट से बाहर निकल जाते हैं। इसका ज्ञान उन्हें स्वयं होता है, जबकि मनुष्य अपने लाभ के लिए उसको सीखता और खोजता है।
          हमारे लिए प्राणदायी तत्व, वायु, जल, मिट्टी और धूप आदि प्राकृतिक तत्वों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इन तत्वों के संपर्क में रहने से तथा उचित समय पर उनका सही प्रयोग करने पर मनुष्य का स्वास्थ्य उत्तम बना रहता है।
          प्राकृतिक चिकित्सकों ने सिद्ध कर दिया है कि जल में और मिट्टी में असाध्य रोगों को ठीक करने की अद्भुत शक्ति होती है।
          हरी घास, रेत तथा मिट्टी पर नंगे पैर चलना प्राकृतिक उपचार के ही अंग होते हैं। नदियां, विभिन्न जल स्रोत, ठंडे पानी में डुबकी लगाना तथा नहाना प्राकृतिक तरीके से बहुत अधिक लाभदायक होता है। प्राकृतिक चिकित्सक केवल अथक प्रयासों द्वारा रोगों की चिकित्सा ही नहीं करते हैं बल्कि वे दुनिया के लोगों को प्रकृति के नियमों का पालन करने की सलाह भी देते हैं। जिसके कारण हमारा जीवन स्वस्थ बना रहता है।
          प्राकृतिक स्रोतों द्वारा प्राचीनकाल में मिस्र, यूनान और यूरोपीय देशों में चिकित्सा की जाती थी। प्राकृतिक चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुकूल उनका विकास किया। वर्तमान समय में लोगों में बहुत अधिक बदलाव आया है तथा लोग एलोपैथिक दवाओं को छोड़कर प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों को अपनाकर अपने रोगों का इलाज करते हैं।
प्राचीन काल से ही हमें यह ज्ञात हो चुका है कि रोगों का इलाज हमारे चारों ओर उपस्थिति प्राकृतिक तत्वों की सहायता से किया जा सकता है। इन्हीं के कारण हमारा जीवन चलता रहता है। यदि किसी कारणवश यह अंसतुलित हो जाता है तो हमारा स्वास्थ्य खराब हो जाता है। एक ऐसी प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है जो बिना दवाओं के ही, व्यायाम, विश्राम, स्वच्छता, उपवास, आहार, पानी, हवा, प्रकाश, मिट्टी आदि के संतुलित उपयोग से शरीर को रोगों से मुक्त कर देती है तथा व्यक्ति को स्वस्थ और दीर्घ जीवन का रास्ता दिखाती है। वह ``प्राकृतिक चिकित्सा`` पद्धति कहलाती है।
          प्राचीन समय में इटली में बच्चे के जन्म के बाद उसे खुले वातावरण में रातभर छोड़ देते थे। यदि बच्चा सुबह तक जीवित रहता है तो ही उसे जीवित रहने के योग्य माना जाता था। वैसे सुनने में यह पंरपरा पशुओं के आचरण के समान लगती है। परन्तु इटली के निवासी इस तरीके से अपने बच्चे में प्राकृतिक शक्ति का विकास करना चाहते थे। हमारे देश के उत्तर क्षेत्रों के कुछ गांवों में आज भी लोग नवजात शिशु को गंगा में नंगे बदन नहलाते हैं। ``प्राकृतिक चिकित्सा`` सभी सभ्यताओं में किसी न किसी रूप से जुड़ी होती है। ताजी हवा, सूर्य का प्रकाश, स्नान, जल, उपवास तथा आहार पर संयम रखने के बारे में सभी चिकित्सा पद्धतियों में कहा गया है।
          सभी लोग स्वीकार करते हैं कि शरीर के बहुत से रोग तो बिना किसी दवा के ही ठीक किये जा सकते हैं। पेट में दर्द होना या अन्य किसी विकार का होना, उपवास करने से ठीक हो जाता है। पुरानी बीमारियों में रोगी का निवास स्थान परिवर्तन करके उसे दूसरी जलवायु में ले जाने से उसका स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। कुछ लोगों को एक स्थान पर कोई बीमारी होती है और वह ठीक नहीं होती है लेकिन रोगी का स्थान परिवर्तन करने से उसकी बीमारी आसानी से ठीक हो जाती है। स्वच्छ जलवायु में रहने और संतुलित आहार का सेवन करने से बिना किसी औषधि के सेवन से ही रोगों की चिकित्सा की जा सकती है।
          प्राकृतिक चिकित्सा में समस्त बीमारियों के होने का प्रमुख कारण प्रकृति के नियमों का पालन न करना माना जाता है। प्रकृति के नियम के अन्तर्गत आहार का सेवन, कार्य, विश्राम, सांस लेने की प्रक्रिया तथा अधिक सोने और जागने सम्बंधी किसी भी असंतुलन के कारण हो सकता है।
          प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत शरीर में बीमारियों के उत्पन्न होने का कारण विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं को उतना नहीं माना जाता जितना कि हमारे शरीर में ऐसी परिस्थितियों का उत्पन्न होना, जिनसे बीमारी उत्पन्न होती है। प्राकृतिक चिकित्सा के प्रथम सिद्धांत के अनुसार शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति स्वयं होती है जो सभी रोगों से शरीर की रक्षा कर सकती है। प्राकृतिक चिकित्सा करने से हमारे शरीर में एकत्र हुए हानिकारक पदार्थ भी नष्ट हो जाते हैं तथा हानिकारक पदार्थों का प्रभाव भी नष्ट हो जाता है। किसी भी प्रकार की बीमारी होने पर पूरा शरीर प्रभावित होता है। इसलिए इलाज भी पूरे शरीर का किया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में प्रतिदिन शरीर की सफाई, नियमित व्यायाम, विश्राम, निद्रा, उपवास, आहार सम्बंधी नियम, पानी, हवा, सूर्य का प्रकाश तथा मिट्टी का संतुलित उपयोग किया जाता है। इसी कारण से प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति अन्य चिकित्सा पद्धतियों के बराबर ही लाभ देती है। यहीं नहीं प्राकृतिक चिकित्सा अनेक जटिल और असाध्य रोगों में एकमात्र चिकित्सा होती है।
       प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी चिकित्सा है, जिसमें जहरीले रसायनों का व औषधियों का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह चिकित्सा छः तत्वों पर आधारित है। महतत्व, आकाशतत्व, वायुतत्व, अग्नितत्व, जलतत्व, पृथ्वीतत्व, यह छः तत्व ही सृष्टि के मुख्य तत्व है। इन तत्वों के द्वारा हम साध्य, असाध्य सभी रोगों (आधिदैविक, आधिभौतिक, तथा आध्यात्मिक) का उपचार करते हैं। इस षट् तत्व की चिकित्सा को प्राकृतिक चिकित्सा कहा जाता है। इसे प्रकृति चिकित्सा, नैसर्गिक चिकित्सा, प्राकृतिक उपचार, जल चिकित्सा, स्वाभाविक चिकित्सा, कुदरती उपचार, नेचर क्योर, नेचुरोपैथी, नेचर थेरेपी, हर्बल थेरेपी, हिलिंग थैरेपी आदि नामो से भी जाना जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा वास्तव में कोई चिकित्सा नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का सही रास्ता है। अर्थात जीवन जीने की कला है। प्राकृतिक चिकित्सा केवल रोगों को ठीक नहीं करती, बल्कि आपके मन-मस्तिष्क व आत्मा को भी स्वास्थ्य प्रदान करती है। जिससे जीवन दीर्घायु, स्वास्थ और आनंदमय बन जाता है। 

प्राकृतिक चिकित्सा के नियम सर्वथाः हमेशा समान रहते हैं। जो नियम उत्तम स्वास्थ्य के लिए हैं, वही रोगों को ठीक करने के लिए होते हैं। एक ही प्रकार के नियमों का पालन कर के हम स्वस्थ रहते हैं, और रोगी होने पर उन्हीं नियमों के द्वारा रोगों को खत्म करते हैं। इसमें अपनी दिनचर्या में हमें कब, क्या, कैसे, क्यों, खाना पीना व रहना चाहिऐ सिखाया जाता है। प्रकृति के नियमों के विरुद्ध चलने पर शरीर में तरह-तरह के विकार पैदा हो जाते हैं। जिससे शरीर में रक्त संचार की प्रतिक्रिया अवरुद्ध होती है, और शरीर में विभिन्न विजातीय तत्व इकट्ठे हो जाते हैं, तथा जीवनी शक्ति का ह्रास हो जाता है। जिससे हम रोगी होने लगते हैं, और प्रकृति के नियमों को अपनाने से विजातीय तत्व बाहर निकलने लगते हैं, जिससे हम पुनः स्वास्थ को प्राप्त कर लेते हैं। 

प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी चिकित्सा है, जो केवल रोगों को ही दूर नहीं करती बल्कि अगर हम इसको अपनाते हैं, तो रोंग ही हमारे पास नहीं आते, और हम सदा स्वस्थ बने रहते हैं। साथ ही साथ यह पद्धति हमें ईश्वर से भी जोड़ती है। और रोंग, शोक, चिंता, अनिंद्रा, तनाव जैसे मानसिक रोगों को भी ठीक करती है। इसलिये प्राकृतिक चिकित्सा वह चिकित्सा है जो हमें डॉक्टर व वेदों की गुलामी से सदा के लिए मुक्त कर देती है। और सबसे बड़ी विशेषता प्राकृतिक चिकित्सा की यह है, कि इसका समझदारी व धेर्य के साथ प्रयोग करने हानि की कोई भी संभावना नहीं होती। पर केवल लाभ ही लाभ प्राप्त होता है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा ही सर्वोत्तम चिकित्सा है।

आपने देखा होगा की जंगली पशु-पक्षी, जानवर भूमि पर सोते हैं। प्राकृतिक जल पीते हैं। खुले आकाश का व सूर्य की रोशनी का प्रयोग करते हैं, और अधिकतर वृक्षों के पास जंगल में जहां शुद्ध वायु होती है उसका सेवन करते हैं। फल, फूल, पत्ते, घास पूर्णता प्राकृतिक भोजन व प्राकृतिक जीवन यापन करते हैं, जिससे वह कभी अस्वास्थ्य नहीं होते हैं। और अगर कभी थोड़ा बीमार भी होते हैं, तो किसी डॉक्टर की उनको जरूरत नहीं पड़ती, प्रकृति ही उनको स्वास्थ्य प्रदान करती है। प्रकृति ने प्रत्येक मौसम में मौसम के अनुकूल औषधीय गुण युक्त फल व सब्जियां प्रदान की हैं, जो हमारे लिए हितकर होती हैं, और किसी भी रोंग को वह ठीक कर सकती हैं। तथा रोंगों को आने भी नहीं देती। लेकिन हम प्राकृतिक भोजन नहीं करते, उसको पकाकर मिर्च मसाले डालकर तेल आदि वस्तुएं डालकर उस खाने को मृत कर देते हैं। जिससे हमें उस का लाभ नहीं मिल पाता और उस अप्राकृतिक आहार के द्वारा हमें बहुत से रोगों को बार-बार झेलना पड़ता है। प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा रोंग ठीक होते हैं, परंतु प्राकृतिक जीवन जीने से शरीर में रोंग आते ही नहीं है। प्राकृतिक जीवन वरदान स्वरुप है। और रोंग प्रकृति द्वारा दिया गया दण्ड है। जिसको हम प्राकृतिक चिकित्सा की तपस्या के द्वारा ठीक करते हैं। जिससे हमारा जीवन आनंदमय व सुंदर बन जाता है। 

प्राकृतिक चिकित्सा की विशालता हमें ब्रह्मांड से जोड़ती है और उस ऊर्जा से साक्षात्कार कराती है जिससे हमारा यह जीवन चल रहा है। उसको हम ईश्वर, भगवान, कृष्ण, राम, आत्मा आदि कोई भी नाम दें। प्राकृतिक जीवन जीने वाला हमेशा आनंदित रहता है। तथा जो भी उसके संपर्क में आते हैं, वह भी आनंद से भर जाते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा आपके अंदर के डरों को खत्म कर पाप, संताप, भय, अभाव से मुक्त कराके मोक्ष प्राप्त कराती है। स्वास्थ्य मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसे प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
जब बच्चा पैदा होता है, तो वह पूर्ण स्वास्थ्य होता है। उसका शरीर कोमल होता है। शरीर में लचक होती है। उसे कोई बीमारी नहीं होती। अगर बीमारी होती भी है तो मां बाप की गलती का नतीजा होती है। प्राकृतिक जीवन सही में उस बच्चे का होता है। लेकिन हम प्रकृति के विरुद्ध चलकर उस बच्चे को धीरे-धीरे रोगी बना देते हैं। जिन प्राणियों का भोजन जितना अधिक जिविताहर होता है वह उतना ही स्वस्थ होता है। इन तत्वों के अलावा इस शरीर का कोई भी डॉक्टर नहीं है। यह तत्व स्वयं में पूर्ण औषधी स्वरूप है। आज पार्कों में सुबह बहुत से लोग आपको प्राकृतिक आनंद लेते हुए मिल जाएंगे। आज लोग प्रकृति को समझ रहे हैं और उनका प्रयोग कर सभी रोंगों को खत्म कर रहे हैं। धीरे-धीरे उनकी दवाइयां कम हो रही हैं। और डॉक्टरों व अस्पतालों की जरूरतें उनको कम पड़ती जाती है। 

प्राकृतिक जीवन हमारे भारत की परंपरा है। संत महात्माओं, ज्ञानियों,ऋषि, योगियों ने हमें इसका पालन करना सिखाया। प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांत व नियम अटल व अपरिवर्तनशील है क्योंकि अब से पहले भी, अभी भी, ओर आने वाले समय में भी प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग करके हम स्वस्थ होते रहेंगे। आज का मनुष्य और आने वाले समय में भी यही 6 तत्व रहेंगे ओर इनका ही प्रयोग करके हम स्वस्थ होते रहेंगे। तथा हमारी आने वाली पीढ़ियां भी स्वस्थ रहेंगी। प्रत्येक युग में,  जितना खर्चा रोंग होने पर स्वस्थ होने के लिए करता है, उतना खर्च अगर स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए करें तो वह कभी रोगी नहीं बन सकता।जितना पैसा हम दवाइयों, इंजेक्शन, डाक्टरों के बिलों में, ऑपरेशनों में खर्च करते हैं, अगर उतना पैसा साग, सब्जी, फल, व सही दिनचर्या को जीने में लगाएं तो हम कभी अस्वस्थ नहीं होंगे। तथा रोगों से व दवाइयों से बचे रहेंगे। मनुष्य जितना प्रकृति की ओर आयेगा, उससे जुड़ेगा, उतना ही अधिक आनंदमय जीवन जी पाएगा। 

प्राकृतिक चिकित्सा में शोधक, शामक और पूरक तीनों गुण साथ-साथ होते हैं। इसमें विजातीय तत्व शरीर के बाहर निकाले जाते हैं। जिससे शरीर का शोधन होता है। और विजातीय तत्व बाहर निकलने से शरीर को तुरंत आराम पहुंचता है। जो शामक गुण है। साथ ही साथ बिना किसी नुकसान के साइड इफेक्ट के शरीर को आवश्यक सभी पोषक तत्व मिल जाते हैं यही इसका पूरक गुना है। प्रकृति वैसे तो खुद ही हमारे शरीर से विजातीय तत्वों को बाहर निकालने का काम करती है। लेकिन जब किन्ही कारणों से यह विजतीय तत्व इकट्ठे हो जाते हैं, तो इनको निकालने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा का सहारा लेना होता है। ओर उनको निकालने में मदद करनी होती है यही प्राकृतिक चिकित्सा है। प्राकृतिक चिकित्सा कभी रोगों पर नहीं की जाती यह तो केवल शरीर से विजातीय तत्व को निकालने का माध्यम है। और शरीर से सही से विष बाहर निकल जाता है, तो शरीर स्वभाविक अवस्था में आ जाता है। ओर यह स्वभाविक अवस्था ही निरोगी की पहचान होती हैं। जब शरीर से विष बाहर निकलता है तो शरीर की प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है। फिर वह पूर्ण स्वास्थ्य को प्राप्त कर लेता है। प्राकृतिक चिकित्सा केवल रोंगों को ही ठीक नहीं करती बल्कि रोगी को स्वयं का डॉक्टर बना देती है। जिससे वह उन प्राकृतिक नियमों का पालन करके आगे बीमार नहीं करता पड़ता। इस प्रकार प्राकृतिक चिकित्सा ही पूर्ण चिकित्सा है।

Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer Anand Ji)
(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
Physiotherapy, Acupressure, Naturopathy, Yoga, Pranayam, Meditation, Reiki, Spiritual & Cosmic Healing, (Treatment & Training Center)
C53,  Sector 15 Vasundra, Avash Vikash Markit, Near Pani Ki Tanki,  Ghaziabad

Mob-: 9958502499 

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