जल चिकित्सा
जल तत्व हमारे शरीर और जीवन के प्रवाह
को सुरक्षित बनाये रखता है। जल की प्रकृति शीतल होती है। हमारे
शरीर में लगभग 70 प्रतिशत पानी होता है अत: शरीर के तापमान और रक्त संचार में जल
महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विश्व की सभी चिकित्सा प्रणालियों में
प्राचीन समय से ही सुबह के समय स्नान करने को महत्व दिया गया
है। हमारे देश में प्रत्येक महीने पूर्णिमा को नदियों में स्नान किया जाता है, यह पुराने से समय से चली आ रही जल
चिकित्सा का ही रूप है। आयुर्वेद के अनुसार केवल जल ही
एक ऐसा तत्व है जो शारीरिक और मानसिक थकान, बेहोशी, प्यास मिटाने वाला, आलस्य, उल्टी, कब्ज, असमय की निद्रा को दूर करने वाला, मन को प्रसन्न और शांति प्रदान करने
वाला, हृदय के लिए लाभकारी, गुप्तरस
वाला, अजीर्ण को नष्ट
करने वाला, सदा लाभकारी, शीतल तथा अमृत के
समान होता है।
आयुर्वेद के प्रसिद्ध
ग्रंथ `चरक संहिता` में `अवगाहन रक्त मोक्षणा´ के संदर्भ
में जल चिकित्सा का संक्षेप में वर्णन किया है। इसी प्रकार `इन्द्रजालिक
कामरत्न` में विष से पीड़ित रोगी की नाक में पानी डालकर मुंह से
बाहर निकालने का परामर्श दिया गया है। हमारे शरीर के लिए आवश्यक जल को माता के दूध के
समान, औषधि, रोगों को नष्ट करने वाला, शरीर का आधार, स्वास्थ्य
का रक्षक, दीर्घायु करने वाला, वंशानुगत
रोगों को नष्ट करने वाला, गुप्त रोगों को नष्ट करने वाला, तथा शरीर को स्वस्थ और सुंदर बनाने के लिए बहुत लाभकारी
माना जाता है। यदि हमारे शरीर के किसी अंग अथवा भाग में जल की कमी या अधिकता
अथवा असंतुलन होता है तो इसका कारण कोई-कोई अशुद्धि भी
होती है। इसके लिए जल की आपूर्ति, जल निष्कासन, वाष्पन अथवा जल की शुद्धि के लिए जल चिकित्सा में अलग-अलग
तरीके अपनाते हैं।
जल चिकित्सा में पानी को विभिन्न
तरीकों- ताप तथा यंत्रों की सहायता से उपयोग किया जाता है।
ठंडा पानी शरीर की छोटी रक्तवाहिकाओं को संकुचित कर देता है। इससे त्वचा थोड़ी देर के
लिए ठंडी और पीली पड़ जाती है। जैसे ही ठंडे पानी का प्रयोग बंद किया जाता है, रक्त वाहिनियां फैलती हैं और खाली जगह को भरने के लिए त्वचा
की ओर वाहिनियों के अंदर तेजी से खून दौड़ता है। यही वह असर है
जिसके लिए जल चिकित्सक पानी का प्रयोग करते हैं। प्रारम्भ
में रोगी के शरीर पर सादे जल का प्रयोग किया जाता है। जैसे-जैसे
रोगी को लाभ प्राप्त होता जाता है। जल का ताप कम करते जाते हैं। इससे हमारे शरीर
की सहनशक्ति भी बढ़ती है। जल चिकित्सा की इस प्रणाली को आयुर्वेद तथा प्राकृतिक
चिकित्सा के साथ ही साथ आधुनिक चिकित्सा पद्धति एलोपैथिक चिकित्सा में भी समान महत्व
मिला है। हमारे शरीर की विभिन्न बीमारियों को नष्ट करने में जल चिकित्सा का उपयोग
किया जाता है।
`जल चिकित्सा` में स्नान करने की अनेक विधियों का व्यापक प्रयोग किया जाता
है। वाष्प चिकित्सा से हमारे शरीर की चर्बी तथा विभिन्न प्रकार के
विकार दूर हो जाते हैं। आधुनिक ऐलोपैथिक चिकित्सक भी
शरीर के जले हुए अंगों पर बर्फ का पानी लगाने की सलाह देते हैं।
वर्तमान समय में गठिया, हृदय रोग, ब्रोंकाइटिस, दिमागी सूजन, बुखार तथा शरीर
में खून की कमी में पहले गर्म पानी से कटिस्नान तथा बाद में
ठंडे पानी से कटि स्नान को विशेष महत्व दिया जा रहा है।
जल चिकित्सा के अन्तर्गत विभिन्न
क्रियाएं जैसे नियमित रूप से अधिक से अधिक मात्रा में पानी पीना, जल में विभिन्न प्रकार के फलों के रस को मिलाकर पीना, टब में भरे हुए ठंडे पानी से अधिक समय तक
स्नान करना, हमारे शरीर के रोगों से प्रभावित अंगों पर गीली तथा
सूखी पटि्टयों का प्रयोग करना, भाप द्वारा इलाज करना, ठंडे पानी, गर्म पानी तथा
सूर्य में तपाये गये पानी का प्रयोग तथा विभिन्न रोगों के लिए पानी का एनिमा देना भी जल
चिकित्सा के अन्तर्गत आता है। जल चिकित्सा की सबसे बड़ी
विशेषता यह है कि इसे कोई भी व्यक्ति पुस्तकों से पढ़कर आसानी से
रोगों की चिकित्सा कर सकता है। जल के द्वारा रोगों की चिकित्सा करने के लिए किसी
विशेषज्ञ या अनुभवी की आवश्यकता नहीं होती है परन्तु गंभीर रोगों में किसी विशेषज्ञ की
देखरेख में ही इलाज करना चाहिए। जल चिकित्सा के द्वारा लगभग 80 प्रकार की बीमारियों और और 25 प्रकार के शारीरिक विकारों का इलाज सफलतापूर्वक किया जाता है। जल
चिकित्सा में अलग-अलग रोगों में जल की मोटी और पतली धार का प्रयोग किया जाता है जैसे-
जिस रोगी को पुराना सिर दर्द हो उसके बालों को गुनगुने पानी
में भिगोते हैं। इसके बाद सिर पर ठंडा पानी मोटी और तेज धार के
साथ छोड़ा जाता है। इससे रोगी का पुराने से पुराना सिर
दर्द दूर हो जाता है। अधिक मात्रा में पानी पीने से गुर्दे की पथरी गलकर निकल जाती है। हृदय रोग
में पानी की धार का प्रयोग किया जाता है। पुरुष अपने लिंग
के विकार को दूर करने के लिए पानी की तेज धार को लिंग
पर डालता है। इसी प्रकार स्त्रियां भी कटिस्नान स्नान की सहायता से जननेन्द्रियों के रोगों को दूर करती
हैं। नाभि पर तांबे का बर्तन रखकर पानी की धार उस पर डालने से तथा
कटिस्नान करने से पेट के छाले नष्ट हो जाते हैं। जल
स्नान और गीली पट्टी द्वारा पुराने बलगम तथा कफ का इलाज भी जल स्नान
तथा गीली पट्टी से किया जाता है। पेट
की बीमारियों, कब्ज तथा वायु विकारों को नष्ट करने
के लिए वर्षा के पानी में स्नान करना चाहिए। इसके अतिरिक्त सूर्य के प्रकाश में
रखे गये जल को सेवन करना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी होता है।
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer
Anand Ji)
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