Tuesday, 13 February 2018

वात, पित्त और कफ के कारण होने वाले रोग



वात, पित्त और कफ के कारण होने वाले रोग निम्नलिखित हैं-
वात के कारण होने वाले रोग :-    अफारा, टांगों में दर्द, पेट में वायु बनना, जोड़ों में दर्द, लकवा, साइटिका, शरीर के अंगों का सुन्न हो जाना, शिथिल होना, कांपना, फड़कना, टेढ़ा हो जाना, दर्द, नाड़ियों में खिंचाव, कम सुनना, वात ज्वर तथा शरीर के किसी भी भाग में अचानक दर्द हो जाना आदि।
पित्त के कारण होने वाले रोग :-   पेट, छाती, शरीर आदि में जलन होना, खट्टी डकारें आना, पित्ती उछलना (एलर्जी), रक्ताल्पता (खून की कमी), चर्म रोग (खुजली, फोड़े तथा फुन्सियां आदि), कुष्ठरोग, जिगर के रोग, तिल्ली की वृद्धि हो जाना, शरीर में कमजोरी आना, गुर्दे तथा हृदय के रोग आदि।
कफ के कारण होने वाले रोग :-  बार-बार बलगम निकलना, सर्दी लगना, श्वसन संस्थान सम्बंधी रोग (खांसी, दमा आदि), शरीर का फूलना, मोटापा बढ़ना, जुकाम होना तथा फेफड़ों की टी.बी. आदि।

वात से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
आहार चिकित्सा :-  वात से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में रेशेदार भोजन (बिना पकाया हुआ भोजन) फल, सलाद तथा पत्तेदार सब्जियों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
मुनक्का, अंजीर, बेर, अदरक, तुलसी, गाजर, सोयाबीन, सौंफ तथा छोटी इलायची का भोजन में अधिक उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में लहसुन की 2-4 कलियां खानी चाहिए तथा अपने भोजन में मक्खन का उपयोग करना चाहिए इसके फलस्वरूप वात रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
उपवास :-  वात रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले कुछ दिनों तक सब्जियों या फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा इसके बाद अन्य चिकित्सा करनी चाहिए।
सूर्य चिकित्सा :-  वात के रोग से पीड़ित रोगी को अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर प्रतिदिन सुबह के समय में एक हरे रंग का पारदर्शक शीशा लेकर, सूर्य के सामने इस प्रकार से खड़ा होना या बैठना चाहिए कि सूर्य की रोशनी इस पारदर्शक शीशे से होती हुई उसके रोगग्रस्त भाग पर पड़े। इस प्रकार से उपचार करने पर रोगी व्यक्ति को पता चलेगा कि एक हरे रंग का प्रकाश रोग ग्रस्त भाग पर पड़ रहा है। रोगी व्यक्ति को कम से कम प्रतिदिन इस क्रिया को 15 मिनट तक करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप उसका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है, लेकिन इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को खाने-पीने की चीजों का भी परहेज करना चाहिए।
वात के रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में प्रतिदिन नंगे बदन धूप में अपने शरीर की सिंकाई करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
जल चिकित्सा :-  वात रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करना चाहिए ताकि उसके पेट की गंदगी बाहर निकल सके।
वात रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन कटिस्नान, मेहनस्नान, पादस्नान, उदरस्नान तथा सिर स्नान आदि करना चाहिए।
षटकर्म :-   वात रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन कुन्जल, वस्त्रधौती (दूध में कपड़े को भिगोंकर शरीर पर लपेटना), शंख-प्रक्षालन आदि करना चाहिए।
योगासन :-   जिस व्यक्ति को वात रोग हो उसे प्रतिदिन इनमें से कोई भी एक या दो आसन करने से उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है जैसे- हलासन, भुजंगासन, पश्चिमोत्तासन, धनुरासन, वज्रासन, मयूरासन, मण्डुकासन, सुप्तपंवनमुक्तासन, कुर्मासन, सुप्तावज्रासन, उत्तानमण्डुकासन, अत्तानकूर्मासन, जानुशीर्षाशासन, पादहस्तासन तथा चक्रासन आदि।
प्राणायाम :-   वात रोगी को प्रतिदिन भस्त्रिका प्राणायाम करना चाहिए। इसके फलस्वरूप उसका वात रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
मुद्रा :-   वात से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन महामुद्रा, विपरीतकरणी, उडि्डयान बंध आदि करने से बहुत आराम मिलता है।

पित्त से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
आहार चिकित्सा :-  पित्त रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सब्जियों तथा फलों का रस पीना चाहिए।
पित्त रोग से पीड़ित रोगी को भूख न लग रही हो तो केवल फलों का रस तथा सब्जियों का रस पीना चाहिए और सलाद का अपने भोजन में उपयोग करना चाहिए। इसके फलस्वरूप उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को पूरी तरह स्वस्थ होने तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।
पित्त रोग से पीड़ित रोगी को खट्टी, मसालेदार, नमकीन चीजें तथा मिठाईयां नहीं खानी चाहिए क्योंकि इन चीजों के सेवन से पित्त रोग और बिगड़ जाता है।
पित्त के रोगी के लिए गाजर का रस पीना बहुत ही लाभकारी होता है, इसलिए रोगी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में कम से कम 1 गिलास गाजर का रस पीना चाहिए।
अनार, मुनक्का, अंजीर, जामुन, सिंघाड़ा, सौंफ तथा दूब का रस पीना पित्त रोगी के लिए बहुत ही लाभकारी होता है।
पित्त रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में लहसुन की 2-4 कलियां खाने से बहुत लाभ मिलता है।
सोयाबीन तथा गाजर का सेवन प्रतिदिन करने से पित्त रोग जल्द ही ठीक होने लगता है।
उपवास :-   पित्त रोग से पीड़ित रोगी को इलाज करने के लिए सबसे पहले कुछ दिनों तक सब्जियों तथा फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए और इसके बाद अन्य चिकित्सा करनी चाहिए।
सूर्य चिकित्सा :-  पित्त के रोगी को इलाज करने के लिए अपने रोगग्रस्त भाग पर प्रतिदिन सुबह के समय में एक आसमानी, बैंगनी तथा नीले रंग का पारदर्शक शीशा लेकर सूर्य के सामने इस प्रकार से खड़ा होना या बैठना चाहिए कि सूर्य की रोशनी इस पारदर्शक शीशे से होती हुई उसके रोगग्रस्त भाग पर पड़े। इस प्रकार से उपचार करने पर रोगी व्यक्ति को पता चलेगा कि एक आसमानी, बैंगनी या नीला रंग का प्रकाश रोगग्रस्त भाग पर पड़ रहा है।  रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन इस क्रिया को कम से कम 15 मिनट तक करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप उसका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है, लेकिन इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को खाने-पीने की चीजों का भी परहेज करना चाहिए।
पित्त रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में प्रतिदिन नंगे बदन धूप से अपने शरीर की सिंकाई करनी चाहिए।
जल चिकित्सा :- पित्त रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि उसके पेट की गंदगी बाहर निकल सके।
रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन कटिस्नान, मेहनस्नान, पादस्नान, उदरस्नान तथा सिरस्नान आदि करने चाहिए। इसके फलस्वरूप पित्त रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
षटकर्म :-    पित्त के रोगी को प्रतिदिन कुन्जल (रोग की ठीक करने की अन्तिम स्थिति में), वस्त्रधौती (दूध में कपड़े को भिगोंकर शरीर पर लपेटना), शंखप्रक्षलान आदि करने से बहुत लाभ होता है।
योगासन :-  पित्त रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन इनमें से कोई भी एक या दो आसन करने से उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है जैसे- हलासन, पश्चिमोत्तासन, धनुरासन, सर्वांगासन, वज्रासन, मयूरासन, मण्डुकासन, सुप्तपवनमुक्तासन, कुर्मासन, सुप्तावज्रासन, जानुशीर्षासन, पादहस्तासन तथा अर्धमत्स्येन्रदासन आदि।
प्राणायाम :-   पित्त रोगी को प्रतिदिन शीतली, शीतकारी तथा उज्जयी (कुम्भक क्रिया नहीं करनी चाहिए) आदि प्राणायाम करने से आराम मिलता
मुद्रा :-  पित्त से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन महामुद्रा करने से उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को कुम्भक क्रिया नहीं करनी चाहिए।

कफ से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
आहार चिकित्सा :-   कफ के रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा के दौरान सबसे पहले चिकनाई वाले पदार्थ, दूषित भोजन, तली-भुनी चीजों आदि का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इन चीजों का उपयोग कफ रोग में बहुत हानिकारक रहता है।
कफ से पीड़ित रोगी को दूध तथा दही वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इन चीजों के सेवन से रोगी की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।
कफ रोग से पीड़ित रोगी को दूध नहीं पीना चाहिए और अगर उसका मन दूध पीने को करता है तो दूध में सोयाबीन डालकर सेवन करना चाहिए।
कफ रोग से पीड़ित रोगी को ताजे आंवले का रस प्रतिदिन सुबह के समय में पीना चाहिए जिसके फलस्वरूप उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। यदि आंवले का रस न मिल रहा हो तो सूखे आंवले को चूसना चाहिए।
मुनक्का, कच्ची पालक, अंजीर तथा अमरूद का सेवन कफ रोग में बहुत अधिक लाभदायक होता है।
अदरक, तुलसी अंजीर तथा सोयाबीन का कफ रोग में प्रयोग करने से रोगी को बहुत आराम मिलता है।
लहसुन तथा शहद का प्रयोग भी कफ रोग में लाभदायक होता है और इससे रोगी का कफ रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
उपवास :-   कफ के रोग से पीड़ित रोगी को इलाज करने के लिए सबसे पहले कुछ दिनों तक हरी सब्जियों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा इसके बाद अन्य चिकित्सा करनी चाहिए। इसके फलस्वरूप उसका यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
सूर्य चिकित्सा :-  कफ रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर सुबह के समय में एक पीला, नारंगी तथा लाल रंग का पारदर्शक शीशा लेकर, सूर्य के सामने इस प्रकार से खड़ा होना या बैठना चाहिए कि सूर्य की रोशनी इस पारदर्शक शीशे से होती हुई रोग ग्रस्त भाग पर पड़े। इस प्रकार से उपचार करने पर रोगी व्यक्ति को पता चलेगा कि एक पीला, नारंगी या लाल रंग का प्रकाश रोगग्रस्त भाग पर पड़ रहा है। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन इस क्रिया को 15 मिनट तक करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप उसका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है, लेकिन इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को खाने-पीने की चीजों का भी परहेज करना चाहिए।
रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में प्रतिदिन नंगे बदन धूप से अपने शरीर की सिंकाई करनी चाहिए।
जल चिकित्सा :-  पित्त के रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि उसके पेट की गंदगी बाहर निकल सके।
रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन कटिस्नान, मेहनस्नान, पादस्नान, उदरस्नान तथा सिरस्नान आदि करना चाहिए। इसके फलस्वरूप उसका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
षटकर्म :-   कफ रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन कुन्जल (रोग की ठीक करने की अन्तिम स्थिति में), वस्त्रधौती (दूध में कपड़े को भिगोंकर शरीर पर लपेटना), शंखप्रक्षालन, जलनेति, कपालभाति, शंख, प्रक्षालन (क्षय रोग होने के अन्तिम स्थिति में इसका उपचार करना चाहिए) आदि करना चाहिए। इसके फलस्वरूप कफ रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
योगासन :- कफ के रोगी को प्रतिदिन इनमें से कोई भी एक या दो आसन करने से उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है जैसे- गोमुखासन, श्वास-प्रश्वास, मत्स्यासन, उत्तानकूर्मासन, उत्तानमण्डुकासन, सुप्तवज्रासन, भुजंगासन, धनुरासन, नौकासन, चक्रासन, शलभासन, मकरासन, ताड़ासन, कटिचक्रासन, गोमुखासन तथा उष्ट्रासन आदि।
प्राणायाम :-  कफ रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सूर्यभेदी, भस्त्रिका आदि प्राणायाम करना लाभकारी रहता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को कुम्भक क्रिया नहीं करनी चाहिए।
मुद्रा :-  कफ रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन महामुद्रा तथा उडि्डयान बन्ध आदि करने से उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।


Kalpant Healing Center
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