वंशानुगत रोगों-: कोई भी रोग बाजार में नहीं मिलता। पूर्वार्जित कर्मो, आकस्मिक दुर्घटनाओं अथवा जन्मजात और वंशानुगत रोगों को छोड़ प्रायः अन्य सभी रोगों के लिए बाल्यकाल के पश्चात् रोगी स्वयं ही जिम्मेदार होता है। बाल्यकाल ओर गर्भावस्था में तो जीवन माता के आश्रित होता है। हमारे शरीर के सभी अंगों, उपांगों अन्तःश्रावी ग्रन्थियों, इन्द्रियों आदि का 99 प्रतिशत निर्माण तो बीज रूप में गर्भावस्था में ही हो जाता है। जन्म के पश्चात् तो उसमें मात्र विकास अथवा फैलाव ही होता है। अच्छे फल की प्राप्ति के लिए बीज का अच्छा होना अनिवार्य है। रोगी व कमजोर माता पिता की सन्तान भी रोगी व कमजोर होती है। यह एक प्राकर्तिक नियम है की जेसा बीज वैसा फल, गर्भाधान के समय से ही रज ओर वीर्ये में माता-पिता के दोषों का बीज पनपने लगता है। अतः बच्चे के स्वास्थ्य हेतु विशेष रूप से माता-पिता ही जिम्मेदार होते है। वंशानुगत और जन्मजात रोगों में माता-पिता द्वारा गर्भकाल में रखी गई असावधानियाँ, असंयम, अविवेक एवं उपेक्षावृत्ति ही मूल कारण होते हैं। खेती करने वाला साधारण किसान भी अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए बीज बोने से लेकर फसल प्राप्त होने तक कितनी सजगता, सावधानी और देखरेख करता है, पुरुषार्थ करता है, तो ही उसे अपने परिश्रम का उचित फल मिलता है। तब मनुष्य जैसे व्यक्तित्व के निर्माण के प्रति माता-पिता असजग, बेखबर लापरवाह रहें, अविवेकपूर्ण आचरण करें तो वे अपने कर्तव्यो के प्रति ईमानदार नहीं कहे जा सकते? उसका दुष्परिणाम होता है। अशक्त, कमजोर, दुर्बल, रोगग्रस्त, विकलांग सन्तान। माँ के पेट में बच्चा अधिकांशतः सोया रहता है परन्तु माँ के आवेग अथवा अन्य कारणों से यदि वह जागृत हो जाता है तो उस समय होने वाला बच्चे का विकास अपूर्ण होता है। काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, अहंकार, इर्ष्या, आदि की अवस्था में माता पिता द्वारा किया गया गर्भधान विष के समान होता है। ओर वंशानुगत रोंगों का कारण बनता है
Kalpant Healing Center
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Anand Ji)
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