प्राकृतिक चिकित्सा
मनुष्य की उत्पत्ति प्रकृति से ही हुई है। प्रकृति ही प्रत्येक पौधे को, पशु को तथा
मानव को जीवन प्रदान करती है। शायद यही कारण है कि प्रकृति को मां की संज्ञा दी
जाती है। लेकिन यदि प्रकृति के नियमों का सुचारू रूप से पालन नहीं किया जाता है तो
मनुष्य को उसका दुष्परिणाम भुगतना ही पड़ता है। सबसे बुरा दंड, यदि कोई व्यक्ति अपने
को दे सकता है तो वह है प्रकृति के नियमों की उपेक्षा करके बीमारियों का शिकार हो
जाना। हममें से अधिकांश व्यक्ति इस बात से अनभिज्ञ हैं कि छोटी अथवा बड़ी बीमारी से
ग्रस्त होने पर हमें ठीक होने के लिए दवाइयों का सेवन न करके प्राकृतिक चिकित्सा
पद्धति से अपने रोगों का इलाज करना चाहिए।
प्राकृतिक
चिकित्सा के सिद्धांतों से रोगों की चिकित्सा करना प्राचीन सभ्यता की देन
है। सम्भवत: हमारे पूर्वजों ने पशु-पक्षियों से प्रेरणा ली थी, क्योंकि वे प्रकृति
के बहुत निकट ही रहते थे।
पशु तथा
पक्षी दोनों ही प्राणदायिनी पृथ्वी के संपर्क में हमेशा बने रहते हैं। प्रकृति में
घूमने के कारण उन्हें सांस लेने के लिए ताजी हवा प्राप्त होती रहती है। पशु पक्षी
अपना शरीर रेत में लोटकर, रगड़कर साफ करते हैं। इसके साथ-साथ उनका व्यायाम भी हो जाता है। पशु-पक्षी अधिकतर जल में
डुबकी लगाते हैं, जिससे उनका शरीर स्वच्छ हो जाता है तथा वे ताजगी का अनुभव करते
हैं।
मनुष्यों
के विपरीत पशु अपनी बीमारी की दवा अपने आस-पास उगी हुई वनस्पति में ढूंढ़ लेते हैं।
यह अलग बात है कि आज के युग में पालतू पशु कृत्रिम दवाइयों पर निर्भर करते हैं।
इसका कारण मानव होता है। क्योंकि मानव पालतू पशुओं को बांधकर रखता है जिससे वे
स्वतंत्र रूप से विचरण नहीं कर पाते हैं।
पक्षी
बहुत ही कम बीमार होते हैं। पालतू पशु, जिनको बनावटी जीवन जीना पड़ता है। मजबूरी के
कारण वे कभी-कभी बीमार पड़ जाते हैं लेकिन उसके बाद भी वे प्रकृति के नियमों का पालन
करते हैं। उदाहरणार्थ, यदि कभी कोई पशु बीमार हो जाता है तो वह भोजन
करना छोड़ देता है जब उसके शरीर की प्राणशक्ति उसे रोग से मुक्त कर देती है तो वह
भोजन खाता है। आमतौर पर कुत्ते और बिल्ली घास का सेवन नहीं करते हैं, लेकिन जब वे
बीमार होते हैं तो घास का सेवन अवश्य ही करते हैं जिसके कारण उन्हें उल्टी हो जाती है और जहरीले तत्व उनके पेट से
बाहर निकल जाते हैं। इसका ज्ञान उन्हें स्वयं होता है, जबकि मनुष्य अपने लाभ के लिए
उसको सीखता और खोजता है।
हमारे लिए
प्राणदायी तत्व, वायु, जल, मिट्टी और धूप आदि प्राकृतिक तत्वों में अधिक
मात्रा में पाये जाते हैं। इन तत्वों के संपर्क में रहने से तथा उचित समय पर उनका
सही प्रयोग करने पर मनुष्य का स्वास्थ्य उत्तम बना रहता है।
प्राकृतिक
चिकित्सकों ने सिद्ध कर दिया है कि जल
में और मिट्टी में असाध्य रोगों को ठीक करने की अद्भुत शक्ति होती
है।
हरी घास,
रेत तथा मिट्टी पर नंगे पैर चलना प्राकृतिक उपचार के ही अंग होते हैं। नदियां,
विभिन्न जल स्रोत, ठंडे पानी में डुबकी लगाना तथा नहाना प्राकृतिक तरीके से बहुत
अधिक लाभदायक होता है। प्राकृतिक चिकित्सक केवल अथक प्रयासों द्वारा रोगों की
चिकित्सा ही नहीं करते हैं बल्कि वे दुनिया के लोगों को प्रकृति के नियमों का पालन
करने की सलाह भी देते हैं। जिसके कारण हमारा जीवन स्वस्थ बना रहता है।
प्राकृतिक
स्रोतों द्वारा प्राचीनकाल में मिस्र, यूनान और यूरोपीय देशों में चिकित्सा की जाती
थी। प्राकृतिक चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुकूल
उनका विकास किया। वर्तमान समय में लोगों में बहुत अधिक बदलाव आया है तथा लोग
एलोपैथिक दवाओं को छोड़कर प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों को अपनाकर अपने रोगों का
इलाज करते हैं।
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer
Anand Ji)
(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand
Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
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