रोंगों के कारण
संसार में जो भी प्रघट होता है उसका कोई न कोई कारण जरूर होता है। शरीर के रोगी होने के भी बहुत से कारण होते है। ज्योतिष की नजर में रोंग ग्रहों की दशा के कारण होते है। वही तांत्रिक ओझा आदि रोंगों का कारण भूत प्रेत को मानते है। एलोपैथी कीटाणु विषाणु व जीवाणुओं को रोंग का कारण मानते है।
वही आयुर्वेद वात कफ पित्त के असंतुलन को रोंगों का कारण मानते है। परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा इन सब से अलग रोगी को ही रोंग का कारण मानती है
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोंग के मुख्य दो कारण होते है बाह्य व आंतरिक, प्राकृति के विरुद्ध चलना व व्यवहार करना बाह्य कारण है, ओर काम क्रोध, भय, अहंकार, इर्ष्या, द्रेष, हीनभावना, आदि आंतरिक कारण होते है। सभी रोंग पहेले हमारे सूक्ष्म शरीर में आते है फिर स्थूल शरीर में, रेकी के द्वारा रोंगों को सूक्ष्म शरीर में ही खत्म कर दिया जाता है, ओर स्थूल शरीर तक रोंग नहीं आते। प्राकृतिक चिकित्सा भी स्थूल शरीर से रोंगों को खत्म तो करती ही है, साथ ही साथ सूक्ष्म शरीर के रोंग भी खत्म हो जाते है। जिससे हम बहुत से आने वाले रोंगों से भी बच जाते है।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोंगों के कुछ कारण
अप्राकृतिक जीवन यापन-: जब हम प्राकृति के विरुद्ध आचरण करना शुरू करते है, तो रोगी होना शुरु हो जाते है। हमारी प्रतिदिन की आदते ही रोंगों का कारण बन जाती है। जेसे अप्राकृति भोजन, आलस्य, पंचतत्वों का कम प्रयोग, अनियमित भोग विलास, मिथ्योउपचार, व मानसिक व्यवहार व विचार आदि।
किसी घर में 4 सदस्य एक साथ रहते हैं। चारों लोग अप्राकृतिक रूप से जीवनयापन करते हैं। वे उत्तेजक तथा मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं, आवश्यकता से अधिक भोजन करते हैं, परिश्रम नहीं करते हैं, तथा निर्मल जल, सूर्य का प्रकाश तथा स्वच्छ वायु आदि प्राकृतिक उपादानों का उचित रूप से भी सेवन भी नहीं करते हैं, इसके परिणामस्वरूप उन चारों व्यक्तियों के शरीर का रक्त जहरीला हो जाता है। उनका शरीर दूषित मल (जिसे प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान की भाषा में `विजातीय द्रव्य` कहते हैं।) से भर जाता है। जिसके परिणामस्वरूप चारों सदस्य रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं। परिस्थिति, आयु, प्रकृति आदि के अनुसार उन चारों प्राणियों में सभी अलग-अलग बीमारियों से पीड़ित होते हैं। जैसे कोई दस्त से पीड़ित हो सकता है, किसी को बुखार हो सकता है, किसी को गठिया का रोग हो सकता है, तो किसी को बवासीर होती हैं। इस प्रकार अप्राकृतिक जीवन यापन से बहुत से रोंग पैदा होते है
विजातीय द्रव्य-: विजातीय द्रव्य का अर्थ है वो पदार्थ जिनकी शरीर को आवस्यकता नहीं होती, ओर वो शरीर में संचित होकर रोंग पैदा करते है, विजातीय द्रव्य कहलाते है। शरीर के अन्दर पोषण व निष्क्रासन की क्रिया निरंतर चलती रहती है, जब किसी भी कारण से निष्क्रासन की क्रिया में बाधा उत्पन्न होती है, तो हमारे शरीर में विजतिय द्रव्य जमा हो जाते है। ये द्रव्य ठोस, तरल, व गेस तीनों अवस्थाओं में पाये जाते है जेसे मल, मूत्र, पसीना, कफ, दूषित वायु, दूषित साँस, दूषित रक्त, दूषित मांस, आदि कोई भी वस्तु जो शरीर को पोषण नहीं दे सकती, ओर रोंगों का कारण बनती है वो सब विजातीय द्रव्य होते है
जब हम प्राकृतिक नियमों के अनुसार अपना जीवन यापन करना छोड़ देते हैं, तो तब विजातीय द्रव्य हमारे शरीर में बड़ना शुरू हो जाते है। ओर हमें विभिन्न शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
शरीर के दूषित पदार्थों को निकालने वाले प्रमुख अवयव निम्नलिखित हैं-
* फेफडे़ :फेफड़े श्वास के द्वारा शरीर से कार्बन डाईआक्साइड को बाहर निकालते हैं।
* गुर्दे :गुर्दे मूत्र और नमक को शरीर से बाहर निकालते हैं।
* आंते :खाना पचने के बाद जो अवशिष्ट शेष बचा रह जाता है, आंते उसे मल के साथ पेट से बाहर निकाल देती हैं।
* त्वचा :त्वचा पसीने की सहायता से शरीर के दूषित तत्वों को शरीर से बाहर निकाल देती है।
यदि उपर्युक्त अंगों पर जरूरत से अधिक भार पड़ता है, तो नसों में रुकावट आ जाती है जिससे खून का बहाव ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है जिसके कारण खून में विषैले पदार्थ मिल जाते हैं। अधिक मात्रा में किया गया ऐसा भोजन, जिसकी गुणवत्ता में कमी हो, साथ में व्यायाम का भी अभाव नसों में रुकावट पैदा करता है। इसके परिणामस्वरूप श्वास प्रक्रिया सम्बंधी अवयवों, जैसे नाक और गले में सूजन हो जाती है, त्वचा शुष्क हो जाती है तथा बहुत अधिक तैलीय हो जाती है, लीवर में भी सूजन उत्पन्न होने से उसमें वृद्धि हो जाती है, आंतों में कब्ज हो जाता है और शरीर के अवशिष्ट पदार्थ के विषैले तत्व खून के प्रवाह में मिल जाते हैं। इस स्थिति में ऑक्सीजन द्वारा बिगड़ी हुई प्रणाली को सुधारने के लिए व्यायाम की आवश्यकता होती है।
विजतिय द्रव्य का प्रथम स्थान पेट होता है, ओर पेट से ही सब बीमारियों का जन्म होता है। ओर जब विजातीय द्रव्य अम्ल रूप धारण करके शरीर में भ्रमण करता है, ओर जगह जगह जमा होता है तो रोंग पैदा होते है। विजातीय द्रव्य में अपने रूप को बदलने की अद्भुत क्षमता होती है। ओर जब इसमें उद्देग होता है तब इसमें कीटाणु व जीवाणु उत्पन्न होने लगते है फिर यही रोंग का रूप ले लेते है। उद्देग के कारण विजातीय द्रव्य में गर्मी पैदा होती है जिससे तीव्र रोंग सर्दी, खाँसी, जुखाम, बुखार, कब्ज, दस्त, उल्टी, आदि होने लगती है।
विजतिय द्रव्य केवल खाने पीने से ही शरीर में नहीं बड़ता है ओर भी मार्गो से शरीर में प्रवेश करता है श्वास के साथ हवा में मोजूद कीटाणु, धुल-कण, धुआ, आदि तत्व शरीर में चले जाते है। मुख के द्वारा पानी की गंदगी शरीर में जाती है। सांप आदि जहरीले जंतु के काटने से विष शरीर में प्रवेश कर जाता है। बहुत से विष एलोपैथी दवाओ के द्वारा शरीर में पहुंचता है। बहुत से नसे के रूप में (तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, अफीम, गांजा, चरस, शराब, विस्की, आदि) विष हमारे शरीर में पहुंचते है। इसप्रकार बहुत से विजातीय द्रव्य हमारे शरीर में प्रतिदिन आते रहेते है, ओर जब जमा हो जाते है, तो रोंग हो जाते है।
Kalpant Healing Center
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