Friday, 16 February 2018

रोंग क्या है

 रोंग क्या है

प्राकृतिक चिकित्सा की सहायता से रोगों को दूर करना एक साधारण सी बात होती है। इसकी विधि तो पशु-पक्षी भी जानते हैं तथा इसी के उपयोग से वे निरोग रहते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांत अटल और अपरिवर्तनशील हैं। जब तक हमारी यह पृथ्वी रहेगी तब तक यह सत्य भी कायम रहेगा कि मनुष्य प्रकृति के जितना नजदीक रहेगा उतना ही वह स्वस्थ और सुखी रहेगा क्योंकि प्रकृति के पास रहने वाले व्यक्ति के पास रोग, शोक और दु:ख आ ही नहीं सकते हैं हम जिसे रोग कहते हैं। यह वास्तव में प्राकृतिक चिकित्सा है। रोग होने पर हमें अपनी गलतियों का अहसास होता है। रोग हमारे मित्र के समान होते हैं जो हमें स्वास्थ्य के प्रति सचेत करने के लिए आते हैं।

          उदाहरणार्थ यदि मस्तिष्क में कोई विकार आ जाए तो प्रकृति उस विकार को दूर करने के लिए रोगी को जुकाम कर देगी, या प्यास ज्यादा लगेगी और नाक से पानी निकलकर वह विकार दूर हो जाएगा। प्रकृति अपने आपमें स्वयं ही एक चिकित्सक है।

           जब पानी पीते समय पानी हवा की नली में चला जाता है तो खांसी पैदा करके प्रकृति ही उसको ठीक करती है। हडि्डयों के टूट जाने उसे प्रकृति ही जोड़ती है। हमें मालूम होना चाहिए कि रोगी के रोग का निवारण उसका शरीर स्वयं ही करता है। प्रकृति का सारा काम तेजी से नहीं बल्कि धीरे-धीरे होता है। जो शक्ति धीरे-धीरे संचित होती है वह शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। जैसे कि पेड़ काटने में थोड़ा सा समय ही लगता है परन्तु पेड़ को उगाने और बड़ा होने में वर्षों का समय लग जाता है। उसी प्रकार प्राकृतिक चिकित्सा में धैर्य का होना बहुत ही आवश्यक होता है। जब रोगी सभी प्रकार की चिकित्सा करके परेशान हो जाता है तो वह प्राकृतिक चिकित्सा की शरण में आता है।

हमारे शरीर की गंदगी फेफड़े और साँस के द्वारा , त्वचा के असंख्य छिद्रों द्वारा , पसीने के द्वारा तथा पेट की गंदगी मल मूत्र के साथ बहार निकलती रहेती है , यदि किसी कारणवश शरीर की गंदगी बाहर निकलने में अवरोध होता है तो प्रकृति को मजबूर होकर इस गंदगी को बाहर निकालने के लिए असाधारण रूप धारण करना पड़ता है। प्रकृति के इसी असाधारण रूप को साधारण भाषा में रोग कहते हैं और चिकित्सा विज्ञान की भाषा में मूल रोग के लक्षण कहते हैं। जेसे दस्त, ज्वर, उल्टी, जुखाम, आदि रोग का एक और नाम शरीर की अस्वाभाविक अवस्था होती है। सामान्यत: जब तक रोग सुषुप्तावस्था में विजातीय द्रव्यों के रूप में शरीर के अंगों में व्याप्त रहता है। रोग का न तो कोई नाम होता है और न ही उसकी कोई आकृति होती है किन्तु जैसे ही वह बाहर निकलने के लिए प्रकट रूप में आता है तो उसे विभिन्न नाम दे दिये जाते हैं आधुनिक परिभाषा के अनुसार शरीर के किसी अंग/उपांग की संरचना का बदल जाना या उसके कार्य करने की क्षमता में कमी आना 'रोग' कहलाता है। परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार किसी भी शारीरिक मानसिक व आत्मिक बीमारी दुःख व्यथा बैचेनी असहजता का नाम रोंग है हमारे शरीर से गंदगी कई रूपों से बहार निकलती है

1.    शरीर की कुछ गंदगी फेफड़ों और सांस के द्वारा बहार निकलती है
2.    कुछ  त्वचा के असंख्य छिद्रों द्वारा पसीने के रूप में बहार निकलती है
3.    तथा पेट की गंदगी मल-मूत्र के साथ बाहर निकलती रहती है।


रोंग के लक्षण शरीर में अचानक दिखाई देते है, ओर हम कहेते है कि रोंग हो गया, किन्तु रोंग कभी अचानक शरीर में नहीं आता, रोंग तो शरीर का वो मल है जो शरीर में बहुत पहेले से संचित करता है। जिसको निकलने के लिये प्राकर्ति ज्वर, दस्त, फोड़ा, फुंसी, जुखाम, खाँसी, आदि आसाधारण ढंग काम में लाती है। जैसे हमारे शरीर में फोड़ा निकलने के बहुत पहले फोडे़ का बीज हमारे शरीर में मल के रूप में आरोपित हो चुका होता है। इसका कोई नाम पहचान नहीं होती है तथा यह शरीर में पड़े-पड़े वृद्धि करता रहता है और समय पाकर यही बीजरूपी जल फोड़ा बनकर शरीर से बाहर निकलता है। तब उसे विभिन्न नामों जैसे जहरबाद, कारबन्कल, चेचक, गलका, गूंगी आदि नामों से जाना जाता है। इसी प्रकार शरीर का संचित मल परिस्थितियों के अनुसार कभी ज्वर के रूप में प्रकट होता है तो कभी दस्तों के रूप में तथा कभी अन्य रोगों के रूप में उभरकर शरीर से बाहर आता है। ओर विभिन्न नाम धारण करता है


डाक्टर जेस्मीमसर के अनुसार स्वास्थ्य की परिवर्तित अवस्था को रोंग कहेते है जब तक रोंग 

 सुषुप्तावस्था में विजातीय द्रव्यों के रूप में शरीर के अंगों में व्याप्त रहता है। रोग का न तो कोई 

नाम होता है और न ही उसकी कोई आकृति होती है किन्तु जैसे ही वह बाहर निकलने के लिए 

प्रकट  रूप में आता है तो उसे विभिन्न नाम दे दिये जाते हैं। इस प्रकार जब हम अपनी दिन चर्या 

प्राकर्ति के नियमो के विरुद्ध बनाते है तो प्राकर्ति हमे दण्ड स्वरूप सजा देती है ओर इस सजा को 

हम रोंग कहेते है।
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer Anand Ji)
(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
Physiotherapy, Acupressure, Naturopathy, Yoga, Pranayam, Meditation, Reiki, Spiritual & Cosmic Healing, (Treatment & Training Center)
C53,  Sector 15 Vasundra, Avash Vikash Markit, Near Pani Ki Tanki,  Ghaziabad
Mob-: 9958502499 

No comments:

Post a Comment