प्राकृतिक चिकित्सा का आरंभ काल
कल्प के आरंभ में जब सृष्टि का निर्माण हुआ, तभी से प्राकृतिक
चिकित्सा का भी आरंभ हुआ था। प्रकृति के आधार तत्व पंचतत्व जिनसे विश्व की रचना
हुई, प्राकृतिक चिकित्सा भी उन्हीं तत्वों के द्वारा की जाती
है। इस प्रकार सृष्टि के आरंभ से ही प्राकृतिक चिकित्सा का अस्तित्व स्वीकार किया
जाता है। वेदों में भी जल व उपवास चिकित्सा की बातें मिलती हैं। और जब कोई
बीमार होता था, तो वह उपवास द्वारा रोंग
मुक्त हो जाता था, जैसे पशु पक्षी बीमार होने पर
आज भी खाना छोड़ देते हैं। सृष्टि के आरंभ में कोई भी डाक्टर और औषधीय
चिकित्सा नहीं थी। तब सभी पूर्ण रूप से प्राकृतिक चिकित्सा पर निर्भर थे। रामायण
काल में रावण के द्वारा कहने पर वैधजनो ने जड़ी बूटियों की खोज की, ओर काढ़ा बनाकर विभिन्न औषधियों का विभिन्न बीमारियों में प्रयोग होने
लगा। यहीं से औषधिये चिकित्सा का आरंभ हुआ। औषधिय चिकित्सा सरल होने की वजह से
प्रचलित होती गई और प्राकृतिक चिकित्सा धीरे-धीरे लुप्त होती गई। लेकिन यह प्रगति
आयुर्वेद से रसायन में बदलती गई और फिर आज की एलोपैथिक चिकित्सा का आरंभ हुआ।
लेकिन जहाँ इन रसायनों से लोगों को जल्दी लाभ हो रहा था, वही
बहुत से हानिकारक प्रभाव भी शरीर पर पढ़ रहे थे। लेकिन किसी का शरीर की ओर ध्यान
नहीं गया और एलोपैथिक चिकित्सा निरंतर प्रगति करती गई और आज मुख्य चिकित्सा के रुप
में एलोपैथिक चिकित्सा प्रयोग जाती है।
एक समय था जब न डॉक्टर थे ना ही अस्पताल, लेकिन उस समय के आदमी
अधिक स्वास्थ्य, बलवान, बुद्धिमान,
योगी, दीर्घ आयु वाले होते थे। और पूरा जीवन
उनका आनंद के साथ बीतता था। उन्हें कोई रोंग नहीं होता था, और
वह रोंग होने पर प्रकृति का ही सहारा लेते थे। वह प्रकृति के उपासक होते थे। हमारे
संत महात्माओं ने कुछ ऐसी परंपरायें देश को दी जैसे तीर्थ यात्रा का भ्रमण,
व्रत, उपवास, कल्पवास,
सात्विक भोजन, सप्ताह में 1 दिन का व्रत, पूर्णमासी व अमावस्य का व्रत, साल में दो बार नवरात्रों का व्रत, समय-समय पर
रामनाम का जागरण, मंत्र जप के नियम, पूजा
पाठ के नियम, आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथ्वी पूजन आदि प्राकृतिक
चिकित्सा का ही स्वरुप था। जिसको धर्म के साथ जोड़ दिया। जिससे इस चिकित्सा का
अस्तीत्व बना रहें। इस प्रकार प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग आदिकाल से होता आ रहा
है। लेकिन जैसे-जैसे विषैली औषधियां, रसायनिक औषधियां प्रगति
करती गई वैसे-वैसे प्राकृतिक चिकित्सा का अस्तित्व समाप्त होने लगा। इन औषधियों का
प्रयोग सरल होता है व सरकार कानूनों द्वारा भी रसायनिक चिकित्सा को एवं चिकित्सको
को प्रोत्साहन एवं संरक्षण मिलने से इसका विस्तार होता जा रहा है। इस चिकित्सा में
अनेक अवगुण होते हैं और दवा लेते लेते मनुष्य दवा का आदी हो जाता है। ओर नित्य
उसकी दवाईयां बढ़ती जाती है। उसकी अपनी जीवनी शक्ति इतनी कमजोर हो जाती है कि वह
प्राकृतिक के नियमों का प्रयोग करने व समझने में अक्षम हो जाता है। उनसे घबराने
लगता है। जिससे बेहतर चिकित्सा नहीं कर पाता और रसायनिक चिकित्सा करते करते स्वयं
को खत्म कर देता है। दूसरा एलोपैथिक चिकित्सा का प्रचार प्रसार इतना अधिक होता है
कि मनुष्य के मन में अवचेतन तक यही चिकित्सा समा चुकी है। परंतु फिर भी प्राकृतिक
चिकित्सा अपने गुणों के कारण आज भी अपने अस्तित्व को बनाए हुए हैं। और आज सभी इसको
समझने लगे है, व इसकी ओर तेजी से बढ़ रहे है। ओर यह 21वीं सदी की मुख्य चिकित्सा बनती जा रही है। ओर अब वो समय दूर नहीं है जहाँ
हर व्यक्ति एलोपैथिक चिकित्सा से पहले प्राकृतिक चिकित्सा का सहारा लेगा और हर जगह
प्राकृतिक अस्पताल नजर आने लगेंगे।
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer
Anand Ji)
(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand
Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
Physiotherapy, Acupressure, Naturopathy, Yoga, Pranayam, Meditation, Reiki, Spiritual & Cosmic Healing, (Treatment & Training Center)
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