Sunday, 11 February 2018

सूर्य चिकित्सा


सूर्य चिकित्सा-             

          ``सूर्य चिकित्सा`` प्रणाली आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली से भी अधिक पुरानी है। सूर्य चिकित्सा प्रणाली मानव के लिए अधिक उपयोगी होती है। आधुनिक समय के चिकित्सक स्वीकार करते हैं भविष्य में आने वाले समय में सूर्य चिकित्सा द्वारा ही रोगों का इलाज किया जाएगा क्योंकि यह शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति (इम्युनिटी) को प्रबल बनाती है।
           ``ऋग्वेद´´ के अनुसार सूर्य हमारे हृदय और त्वचा के समस्त रोगों को नष्ट करने की क्षमता रखता है तथा अन्य रोग उत्पन्न होने से पहले ही सूर्य के प्रकाश से नष्ट हो जाते हैं। यह संसार की सबसे पुरानी और व्यवस्थित चिकित्सा पद्धति है। महाभारत में वर्णन मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र `साम्ब` को जन्म के समय से ही कुछ विकार थे जिनका इलाज सूर्य चिकित्सा की सहायता से किया गया था।
          यूरोपीय देशों में सूर्य स्नान को विशेष महत्व दिया जाता है। आधुनिक अनुसंधानों से स्पष्ट हो चुका है कि सूर्य की किरणों में शरीर के रोगों से मुकाबला करने की असीम शक्ति भरी होती है। सूर्य चिकित्सा से संबधित सबसे अधिक रिसर्च यूरोपीय देशों में की गई। वर्तमान समय के वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं कि सूर्य चिकित्सा द्वारा खांसी, जुकाम, निमोनिया, टी.बी, सफेद दाग, त्वचा के विभिन्न रोग तथा रक्तविकार संबंधी विभिन्न रोग आसानी से नष्ट हो जाते हैं। सूर्य चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार अन्य चिकित्सा पद्धतियां शरीर के भीतर जहरीले कीटाणुओं पर हमला करने के साथ ही साथ लाभकारी जीवाणुओं को भी नष्ट कर देती हैं किन्तु सूर्य चिकित्सा शरीर के द्वारा ही शरीर की रक्षा करती है।
          सूर्य चिकित्सा के आधुनिक शोधकर्ताओं के अनुसार प्रकृति सूर्य पर निर्भर होता है। यह पृथ्वी और उसके समस्त जीव जन्तु, पेड़-पौधे सूर्य के प्रकाश से ही अपना जीवनयापन करते हैं। हमारी पृथ्वी के समस्त पदार्थ सूर्य के ही अंश होते हैं। हमारा भोजन भी सूर्य से ही प्राप्त होता है। फ्रांस के हृदय विशेषज्ञों के अनुसार- जब सौरमंडल में तूफान आते हैं तो दिल के दौरों के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। अन्य विशेषज्ञों के अनुसार- जहां दवाइयों को हजम करने में शरीर को काफी समय लेना पड़ता है। वही सूर्य की किरणें हमारे शरीर में सीधे अंदर तक जाती हैं। इसकी बड़ी विशेषता यह है कि इस चिकित्सा में बिल्कुल भी खर्च नहीं करना पड़ता है। यदि निष्कर्ष स्वरूप कहा जाए तो सूर्य ही स्वास्थ्य है, सूर्य ही जीवन, सूर्य ही शक्ति है तथा शरीर में सूर्य के प्रकाश की कमी ही रोगों का कारण होती है। सूर्य की किरणों का संतुलित उपयोग ही रोगों को ठीक करने के काम में आती है।
          प्रसिद्ध शोधग्रंथ `एडवान्सेज इन रिसर्च` में यह लिखा गया है कि सूर्य की किरणों से ही पेड़-पौधों में सभी विटामिन उत्पन्न होते हैं। यहां तक की हमारे शरीर के रोगों में प्रयुक्त की जाने वाली औषधियों में भी औषधीय गुण सूर्य की किरणों के द्वारा ही होते हैं।
          ब्रिटिश एन्साइक्लोपीडिया आफ मेडिकल प्रैक्टिस के अनुसार- हमारे शरीर की त्वचा पर जब सूर्य की किरणें पड़ती है तब त्वचा को विटामिन `डी´ प्राप्त होता है जिससे शरीर में संक्रामक रोगों से लड़ने की शक्ति उत्पन्न होती है। हमारे शरीर की मांसपेशियों की शारीरिक क्षमता बढाने, स्नायुतंत्र की शक्ति, हडि्डयों की मजबूती, दांतों और मसूढ़ों तथा एलर्जिक रोगों को दूर करने के लिए सूर्य का स्नान बहुत आवश्यक होता है।
          रेडियोंथेरपी के विशेषज्ञों का भी मानना है कि कैंसर की प्रारिम्भक अवस्था में धूप में नंगे बदन लेटने से जो किरणें हमारे शरीर में पहुंचती हैं। वे किरणे नये कैंसर सेल को बनने से रोकती हैं तथा इसके साथ ही साथ पुराने कैंसर सेलों को खत्म करने का भी कार्य करती हैं।
          गुप्त रोग विशेषज्ञों के अनुसार- हमारे शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति सूर्य की किरणों से बढ़ती है। अत: यह सहज ही विश्वास किया जा सकता है कि गुप्त रोगों की प्रारिम्भक अवस्था में सूर्य चिकित्सा लाभ प्रदान करती है।
          सूर्य चिकित्सा पद्धति के अनुसार- हमारे शरीर में रंग, शक्तियों के असंतुलन से रोग उत्पन्न होते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार वात, पित्त तथा कफ के विकारों के कारण से हमारे शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। वात का रंग पीला, पित्त का रंग लाल तथा कफ का रंग नीला होता है। वात-पित्त के मिश्रण का रंग नारंगी, वात-कफ के मिश्रण का रंग हरा और पित्त-कफ के मिश्रण का रंग बैंगनी होता है। इन्हीं रंगों को पहचानकर उनकी कमी अथवा अधिकता पर आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति कार्य करती है।
          आधुनिक वैज्ञानिकों के मतानुसार- हमारे शरीर में मुख्यत: हाइड्रोजन, कार्बन तथा आक्सीजन के अलग-अलग मिश्रणों से विभिन्न अंग-प्रत्यंग बने हैं। हाइड्रोजन में नीला, आसमानी तथा अन्य गहरे रंगों की किरणें होती हैं। कार्बन में पीली रंग लिए हुए नारंगी रंग का, पीलापन लिए बैंगनी और नीली किरणें होती हैं। ऑक्सीजन में सभी रंगों की किरणें होती हैं। योगशास्त्र में शरीर के भीतर छ: सूक्ष्म चक्रों की मौजूदगी बताई गई है। इनमें मूलाधार-´जननेन्द्रिय से दो अंगुल ऊपर तथा गुदा से दो अंगुल नीचे तक के क्षेत्र में फैला रहता है। यह आकार में 4 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल जैसा तथा लाल रंग का माना जाता है। स्वाधिष्ठान चक्र- मूलाधार चक्र के ऊपर माना गया है। यह आकार में 6 पंखुड़ियों के कमल के फूल के जैसा माना गया है और इसका रंग लोहित माना गया है। मणिपूर चक्र इससे भी ऊपर होता है। यह आकार में 12 पंखुड़ियों से युक्त कमल के फूल के समान होता है तथा इसकी पंखुड़ियां लाल रंग के सिंदूर जैसे रंग की होती हैं।
          क्रोमोपैथी (सूर्य चिकित्सा) के विशेषज्ञों की राय है कि शरीर पर पीले रंग की किरणों का प्रकाश डालने से पेट के रोग ठीक हो जाते हैं, भूख बढ़ जाती है, पाचनशक्ति ठीक हो जाती है, कब्ज नष्ट हो जाता है, निम्नरक्तचाप (लो ब्लडप्रेशर) ठीक हो जाता है। इससे गले की खुश्की दूर होकर त्वचा का रंग सही हो जाता है। शरीर का दर्द, अनिद्रा तथा मूत्रविकारों आदि में लाभ मिलता है।
          शरीर में लाल रंग की किरणों के प्रकाश की कमी से कब्ज उत्पन्न हो जाती है, भूख गायब होने लगती है, शरीर टूटने सा लगता है, अधिक नींद लगती है, मल और मूत्र का रंग बदलने लगता है। नाखून, त्वचा तथा आंखों का रंग भी बदल जाता है। नीले रंग की कमी से दस्त होने लगते हैं। मूत्र में जलन, आंखों के रोग, बुखार, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उच्च रक्तचाप, पीलिया तथा अन्य विकार होते हैं। बैंगनी रंग की कमी से कब्ज होने लगता है। हल्का बुखार, प्रतिदिन सिरदर्द, आलस्य, तथा एसीडिटी (गैस) उत्पन्न हो जाती है। हमारे शरीर में सूर्य के हरे रंग की कमी से होने वाले विकार नीले रंग और पीले रंग की कमी से भी हो जाते हैं। मुख्य रूप से जी घबराना, उल्टियां आना और कमजोरी के लिए भी इसी रंग की किरणों का शरीर में कमी होना कारण माना जाता है। आसमानी रंग की किरणों की कमी से हमारे शरीर में दस्त, पेशाब का रंग पीला हो जाना, पीलिया की शुरुआत, पसीना अधिक मात्रा में आना और बदबूदार आना, आंखों के रोग तथा हैजा (कालरा) होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है तथा इन रोगों से लड़ने की हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी समाप्त हो जाती है। सूर्य की सफेद रंग की किरणों की कमी होने से मानसिक विकार, पक्षाघात तथा सन्निपातिक बुखार हो जाते हैं।
          सूर्य चिकित्सा प्रणाली द्वारा मल-मूत्र, त्वचा, कफ, आंखों तथा नाखूनों के रंग की बारीकी से जांच की जाती है। इसके बाद सावधानीपूर्वक देखा जाता है कि कौन से रंग की अथवा कितने रंगों के असंतुलन के कारण से रोग उत्पन्न हुआ है। हमारे शरीर में सूर्य की एक ही रंग की कमी तथा दूसरे रंग की अधिकता से भी रोग में वृद्धि हो जाती है तथा दूसरी ओर सूर्य चिकित्सा से लाभ भी प्राप्त होता है।
          सूर्य चिकित्सा पद्धति में दवाओं और साबुन का एनिमा नहीं लिया जाता है, बल्कि सूर्य की किरणों से गर्म किये गये पानी को पेट साफ करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। जिसके शरीर में लाल रंग की कमी हो, उसी रंग की बोतल में पानी रखकर निर्धारित समय के बाद प्रयोग में लाया जाता है। फलों का रस, नींबू पानी तथा दूध के आधार पर उपवास रखना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
सूर्य स्नान :
          सूर्य स्नान के लिए हमें बिल्कुल नंगे बदन होना पड़ता है। धूप की तेजी उतनी होनी चाहिए जितना कि हम सह सके। प्रतिदिन शौच आदि क्रियाओं से निवृत्त हो जाने के बाद केवल एक गिलास पानी पीकर लगभग 20-30 मिनट तक धूप में लेटने तथा उसके थोड़ी देर बाद ठंडे पानी से स्नान करने से लगभग समस्त रोगों में लाभ मिल सकता है। सूर्य स्नान के समय शरीर पर कंबल ओढ़ना चाहिए। सिर पर पानी से भीगा हुआ कपड़ा रखना चाहिए। थोड़ी देर के बाद करवटें बदलती रहनी चाहिए ताकि पूरे शरीर में सूर्य की किरणों का प्रकाश पहुंच सके। इसके अतिरिक्त कुछ रोगों जैसे वात और शीत रोगों में अथवा नामर्दी (नपुंसकता) के इलाज के लिए सर्दियों की धूप में नंगे बदन सूर्य के प्रकाश में रहने के साथ ही शुद्ध सरसों तथा तिल के तेल की मालिश करने से भी अधिक लाभ मिलता है। सूर्य स्नान तथा मालिश से पुरानी खांसी, शीघ्रपतन, नपुंसकता, गैस, बलगम, जोड़ों का दर्द, चोट, मोच, रक्त संबंधी रोग, हडि्डयों के विकार, त्वचा के विभिन्न रोग जैसे मुहांसे आदि ठीक हो जाते हैं।
          इसके अतिरिक्त विभिन्न तरीकों से जल स्नान, वाष्प स्नान, मेहन स्नान, भीगी पट्टी, कमर में गीली पट्टी का लपेट, गर्म सिंकाई, ठंडी सिंकाई तथा गर्म और ठंडी सिंकाई  का प्रयोग अलग-अलग रोगों के लिए होता है, जो विशेषज्ञों की देख-रेख में विशेष तरीके से ही किया जा सकता है।
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer Anand Ji)
(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
Physiotherapy, Acupressure, Naturopathy, Yoga, Pranayam, Meditation, Reiki, Spiritual & Cosmic Healing, (Treatment & Training Center)
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Mob-: 9958502499

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