ओरा (आभामंडल)
हर व्यक्ति के पीछे अपना आभामंडल होता है, आभामंडल को अंग्रेजी में ओरा कहते हैं। वर्तमान दौर में ओरा विशेषज्ञों का महत्व भी बढ़ने लगा है। इसे सूक्ष्म शरीर, एनर्जी फील्ड, कास्मिक बाडी भी कहते हैं। सामान्य स्थितियों में यह शरीर से 7-9 फीट दूर तक फैला होता है। यह रंगीन ऊर्जाओं से बना होता है, इस कारण ग्रहों की रंगीन एनर्जी इसे बहुत अधिक प्रभावित करती है। अर्थात इसे ठीक करके ग्रहों का दुष्प्रभाव आप मिनटों में समाप्त कर सकते हैं। यह ब्रह्मांड से सकारात्मक ऊर्जाओं को लेकर ऊर्जा चक्रों को देता है। ऊर्जा चक्र उनका उपयोग जीवन संचालन में करते हैं।
कोई भी प्राब्लम या बीमारी सबसे पहले आभामंडल में ही आती है, यदि आभामंडल कमजोर है तो वह उसे भेद कर शरीर तक पहुंच जाती है। अगर आभामंडल मजबूत है तो नुकसान पहुंचाने वाली ऊर्जाओं को अंदर नहीं आने देता और हम पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं।
समस्या पैदा करने वाली ऊर्जाओं को आभामंडल में आते ही रीड किया जा सकता है। उन्हें रीड करके एक सुपर हीलर किसी के भविष्य में क्या होने वाला है यह आसानी से बता देता है। देवी या देवताओं के पीछे जो गोलाकार प्रकाश दिखाई देता है उसे ही ओरा कहा जाता है। दरअसल 'ओरा' किसी व्यक्ति और वस्तु के भीतर बसी ऊर्जा का वह प्रवाह है जो प्रत्यक्ष तौरपर खुली आँखों से कभी दिखाई नहीं देता हैं। उसको सिर्फ महसूस किया जा सकता हैं।
आप किसी व्यक्ति के पास खड़े है और अचानक आपको लगने लगता है की आपको उससे थोड़ा दूर खड़ा होना चाहिए क्यों की आप खुद को उस स्थिति में comfort feel नहीं कर पाते है। जब उससे दूर हटते है तब आपको खुद में self-confidence का अहसास होने लगता है और आप सहज होने लगते है. ऐसा होता आपके औरा क्षेत्र में किसी और का घुसना ये बिलकुल आकर्षण के दायरे के समान है. जब 2 औरा क्षेत्र आपस में मिलते है तब एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश करते है।
हम खुद अनुभव करते हैं। कि कुछ लोगों से मिलकर हमें आत्मिक शांति का अनुभव होता है तो कुछ से मिलकर उनसे जल्दी से छुटकारा पाने का दिल करता है, क्योंकि उनमें बहुत ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा होती है। दरअसल ओरा से ही किसी व्यक्ति की सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को पहचाना जाता है।
लेकिन जब हम किसी वस्तु के नजदीक जाते हैं। या मान लो कि कुछ दिनों के लिए बहार घुमने जाते हैं। तो होटल में जो भी कमरा बुक करवाते हैं।, हो सकता है कि वहाँ घुसते ही आपको सुकून महसूस नहीं हो। हालाँकि घर जैसा सुकून तो कहीं नहीं मिलता। फिर भी कुछ कमरे ऐसे होते हैं। जो डरावने से महसूस होते हैं। तो समझ लें की वहाँ नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह घना होता है।
ध्यान के माध्यम से ओरा के सही प्रवाह को जाना जा सकता है। ओरा विद्या भी एक ऐसी विद्या है जिसमें कोई भी व्यक्ति अपने आध्यात्मिक चक्रों को कुछ इस प्रकार जागृत कर देता है कि उससे निकलने वाली शक्तियों का प्रवाह सामने वाले व्यक्ति के शरीर तक पहुँच सकता है।
ओरा क्या है : प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के चारों और इलेक्ट्रॉनिक मैग्नेटिक फिल्ड का अस्तित्व छाया हुआ है जिसे 'ओरा' कहते हैं। ओरा प्रत्येक व्यक्ति का अपना अलग अलग होता हैं। यह शरीर का सुरक्षा कवच होता हैं। ओरा का क्षेत्र व्यक्ति के शरीर पर तीन इंच से लेकर 20 से 50 मीटर तक की लंबाई तक हो सकता है। इतना ही नहीं 'ओरा' सजीव व्यक्तियों से लेकर निर्जीव व्यक्ति, जानवर, पे़ड-पौधे व सभी वस्तुओं का भी होता है। ओरा व्यक्ति के आभामंडल को कहते हैं। हर व्यक्ति का अपना एक प्रभाव होता है और उसमें इस ओरा का खास महत्व होता है। स्वयं को प्रभावशाली बनाने के लिए ओरा का प्रभावी होना आवश्यक है।
आपके जीवन में जो कुछ भी हो रहा है उसका आभामंडल से सीधा सम्बंध हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि आभामंडल ही सब कुछ तय कर रहा है। कोई व्यक्ति सुखी होगा या दुखी, कोई धनवान होगा या निर्धन, कोई कामकाजी होगा या बेरोजगार, कोई मेहनती होगा या आलसी, कोई पढ़ा लिखा होगा या अनपढ़, किसी का पढ़ने में मन लगेगा या नहीं, किसी के दोस्त अच्छे होंगे या बुरे, किसी का जीवन साथी सुख देने वाला होगा या दुख देने वाला, किसी की शादी होगी या नहीं, कोई कर्ज में डूबा होगा या कर्ज बांट रहा होगा, किसी का पूजा-पाठ फलित होगा या नहीं, किसी को प्यार मिलेगा या नफरत, किसी को सम्मान मिलेगा या अपमान, किसी को सफलता मिलेगी या असफलता, कोई स्वस्थ होगा या बीमार, कोई पाप करेगा या पुण्य, यहां तक कि किसी को मोक्ष मिलेगा या भटकाव यह सब उसका आभामंडल ही तय करता है। आपके जीवन में जो कुछ भी हो रहा है उसका आभामंडल से सीधा सम्बंध हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि आभामंडल ही सब कुछ तय कर रहा है।
सजीव-निर्जीव सभी के इर्द-गिर्द एक प्रकाश का घेरा होता है, जानवर, पे़ड-पौधे, इन्सान (आदमी-औरत), वस्तु, पदार्थ सबके इर्द-गिर्द एक प्रकाश पुंज होता है जो हमें नंगी आँखों से नहीं दिखाई देता परंतु वैज्ञानिक यंत्रों से इसे देखा जा सकता है। इसका फोटोग्राफ लिया जा सकता है और इसके प्रभाव क्षेत्र को नापा जा सकता है।
अपने सभी देवी देवता या संत महात्मा की तस्वीर में सिर के चारों ओर सफेद प्रकाश का घेरा देखा होगा यह उनका ओरा क्षेत्र हैं। लेकिन यह केवल सिर पर ही नहीं होता बल्कि पूरे शरीर के चारों तरफ होता हैं। और यही उसका अपना ऊर्जा क्षेत्र हैं। प्रत्येक पदार्थ इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन से बना होता हैं। यानी (नेगेटिव विधुत अणु + पॉजेटिव विधुत अणु) ये कण निरंतर गतिमान रहेते हैं। जड़ पदार्थ में इनमें गति कम होती हैं। जीवित में ज्यादा सक्रिय व कम्पायमान रहते हैं। इसलिए पेड़ पौधों जानवरों व व्यक्तियों में ऊर्जा क्षेत्र को आसानी से देखा जा सकता हैं।
ओरा की ऊर्जा -: शरीर क्या है? मनुष्य क्या है? प्राचीन काल से भौतिक शास्त्री यह कहते आये हैं कि बुनियादी स्तर से देखें तो हमारा यह शरीर शुद्ध रूप से सिर्फ एक ऊर्जा है। भौकिशास्त्री ने शरीर के बहुस्तरीय ऊर्जा क्षेत्र के अस्तित्व को सिद्ध किया है। इसे प्रभा-मण्डल, आभा-मण्डल या ओरा कहते हैं। इन्होंने वर्षों तक शोध करके इस ऊर्जा-चिकित्सा (Aura Healing) से दैहिक और भावनात्मक विकारों के उपचार की कला को विकसित किया है।
हमारा शरीर एक बड़े ऊर्जा पिण्ड या ओरा में स्थित रहता है, इसी ऊर्जा पिण्ड के द्वारा हम स्वास्थ्य, रोग आदि समेत जीवन की यथार्थता का अनुभव करते हैं। इसी ऊर्जा से हमें स्वचिकित्सा या निरामय रहने का सामर्थ्य मिलता है। समस्त रोगों की उत्पत्ति इसी ऊर्जा पिण्ड से होती है। प्राचीन काल से आधायात्मिक चिकित्साविद् और आयुर्वेदाचार्य इस के बारे चर्चा करते आये हैं, परन्तु इसका वैज्ञानिक दृष्टि से सत्यापन हाल ही के वर्षों में हुआ है।
इस आभा-मण्डल में सात चक्र समेत कई परतें होती हैं। इसकी किसी भी परत या चक्र में कोई गड़बड़, असंतुलन या अवरोध आने से वह भौतिक देह में प्रतिबिम्बित और एकत्रित हो जाती है, जिससे भावनात्मक या दैहिक रोग हो जाता है। हर व्यक्ति चाहे तो अपने देखने और सुनने की क्षमता और सीमा को बढ़ा सकता है। आज ऐसी तकनीक और व्यायाम विकसिक हो चुके हैं, जिससे व्यक्ति अपना आभामण्डल देख सकता है, ओर अपने ग्रहणबोध का विस्तार करके आध्यात्मिक चिकित्सा को समझ सकता है।
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